क्या हवा से कोरोना फ़ैल रहा हैं ?
"हवा से फ़ैल रहा हैं कोरोना" ये बात हम नहीं कह रहे हैं इस बात को एक ऐसी मेडिकल मैगजीन ने की हैं जिस पर दुनिया भर के लोग विश्वास करते हैं। जिसका नाम लैंसेट हैं जिसे लैंसेट मैगजीन भी कहा जाता हैं। ये मैगजीन चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण माता जाता हैं। और जिसमे रिसर्च पेपरों का प्रकाशन भी होता है। उसने बाकायदा कुछ लाइनों में समझाया हैं की कोरोना हवा से फ़ैल रहा हैं। लैंसेट वालो के पास मजबूत आधार हैं जिसके दम पर उन्हों ने बताया हैं की हवा में कोरोना फ़ैल रहा हैं।
कोरोना हवा के जरिये फ़ैल रहा है इसी बात को समझना हैं। इसका मतलब ये नहीं की ये आम रूप से हवा चल रहा हैं उसमे कोरोना हैं। असल में वैज्ञानिको के भाषा में एरो शोल से हैं। ड्रॉपलेट से नहीं।
इसे एक उदहारण से समझते हैं। अगर कोई आदमी परफ्यूम या बॉडी स्प्रे अपने शरीर पर स्तेमाल करता है तो उसमे से कुछ बुँदे निकलती हैं जिसमे से कुछ छोटी और कुछ बड़ी बुँदे होती हैं। लेकिन जहां स्प्रे मारा जाता हैं वहां ड्रॉपलेट ज्यादा चिपकती हैं और कुछ हवा में तैरती हुई दूर तक चली जाती हैं और उससे भी दूर तक उस परफ्यूम की खुशबु हवा में जाती हैं।
असल में लैंसेट ये कहना चाहता है की जो आज तक लेकर चल रहे थे 6 फिट की दुरी वो प्रेक्टिकली फेल हो चुकी हैं। उन्हों ने बाकायदा प्रयोग कर के बताया है। जो दुरी बना कर हम बैठते हैं वह सही नहीं हैं। कोरोना में केवल दुरी मेंटेन करने से नहीं चले गा ये एक मिथ्या हैं ये एरो साल से पहुंच रहा हैं। इन्हो ने एक कमरे में 53 लोगो को शोसल डिस्टैन्सिंग पर बैठाया इसके बाद भी वो 53 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए।
लैंसेट ने ये WHO को एक रिक्वेस्ट भी भेजा हैं की समय - समय पर हाथ धोना, मास्क लगाना, फिजिकली डिस्टेंस के अलावा अब ये भी बताये की एक बंद कमरे में सबसे ज्यादा कोरोना का संक्रमण होता हैं। जो 53 लोगो पर ये रिसर्च हुआ उनमे एक दूसरे तक ड्रॉपलेट नहीं पहुंच रही थी और न ही एक ही सतह को दोबारा किसी ने छुआ था उनका मानना है की एरो शोल के जरिये सभी को कोरोना संक्रमण हुआ हैं। कहने का मतलब ये है की कोरोना ड्रॉपलेट में जा ही रहा था ये सही हैं लेकिन हवा में भी उड़ रहा हैं ये भी सही हैं।
कोरोना की औसतन आयु एक घंटे तक हैं लेकिन ये वायरस अधिकतम 2 से 3 घंटो तक भी जीवित रह सकता हैं।
सिंपल भाषा में बंद कमरों में ज्यादा देर तक और बहार खुली हवा में एक घंटे तक हवा के अंदर जीवित रह सकता हैं।
ध्यान दे ,
बंद कमरों में एक साथ कई लोग न बैठे। बैठना ज्यादा जरूरी हो तो खिड़की दरवाजे खुली रखे ताकि बहरी हवा आता रहे। केवल मुँह से ड्रॉपलेट नहीं निकलते है हमारी नको से भी ड्रॉपलेट निकलते है ये ड्रॉपलेट हमें ठंडी में दिखाई देती हैं जो की बहुत ही छोटी ड्रॉपलेट होती है हवा की तरह और हमारी आखो के द्वारा भी संक्रमण फैला सकती है।
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